Saturday, April 17, 2010

विषय : "शैम्पू के बुलबुले "

पिछले सप्ताह हम इंडिया गेट गए थे, दस रूपये में बड़ा अनूठा यन्त्र खरीदा एक डिबिया में थोडा सा शैम्पू का पानी ले लीजिये , फिर तार का एक लूप मिला है - उसे डुबो-डुबोकर फूंकते रहिये गज़ब के अनगिनत बुलबुले निकलते हैं मेरी घरवाली कहती है की आप भी बच्चों वाला खिलौना खरीद लाये हैं खैर मैं यन्त्र को लेकर बहुत उत्साहित था रात को सोया तो स्वप्न देखा कि , हमारे प्रधानमंत्री जी भी यही बुलबुले वाला यन्त्र खरीद रहे हैं इंडिया गेट से यन्त्र खरीदकर वे सीधे 'लालकिले' चले जाते हैं ध्वजारोहण के बाद स्वतंत्रता दिवस पर उनका भाषण है पर यह क्या ? इस बार प्रधानमन्त्री भाषण देने के बदले शैम्पू के बुलबुले उड़ा रहे हैं हल्की-हल्की धूप निकली है , जो कि बुलबुलों पर पड़कर उन्हें सुन्दर बना रही है एक बुलबुला गरीबी मिटाने का , दूसरा बेरोज़गारी हटाने , तीसरा विकास के सपने दिखाने का ... और इसी प्रकार चौथे , पांचवें और न जाने कितने खूबसूरत बुलबुले निकल रहे हैं पर देखने वाली बात यह है कि , इन सारी ख़ूबसूरत योजनाओं रुपी बुलबुले धरातल पर पहुचने के पूर्व ही फुस्स हुए जा रहे हैं घोषनाओं के साथ बड़ी विडम्बना होती है वे इस कदर भंगुर होती हैं कि , मंच कि ऊंचाई भी नहीं झेल पातीं और धरातल पर आने तक चकनाचूर हो जाती हैं प्रधानमंत्री के इस बुल-बुला यन्त्र पर संसद में विशेष सत्र बुला लिया जाता है पक्ष-विपक्ष-निष्पक्ष सभी में गरमा-गर्म बहंस होती है बहंस का मुद्दा यह नहीं है कि ये बुलबुले हवाई क्यों थे और धरातल पर आने के पूर्व ही क्यों अंतर्धान हो गए ? बल्कि बहंस यह थी कि इन बुलबलों में जो शैम्पू प्रयोग किया गया था , वो मैडम के बालों के धोये हुए शैम्पू का क्यों था ? धन्य है हमारी महान संसद अमित मिश्र इलाहाबाद .(स्थानीय पता : जी - ००३ , अल्फा-२ , ग्रेटर नॉएडा : 9810366891 )

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